फेफड़ों में होने वाला यह रोगों का समूह "श्रिंकेज ऑफ लंग" और "लंग फाइब्रोसिस" के नाम से भी जाना जाता है l यह रोग समूह फेफड़ों के एक भाग इन्टरस्टिशीयम को प्रभावित करते है l फेफड़ों की सबसे आखिरी श्वसन तंत्र की संरचना जिसे वायु कोष कहा जाता है इसमें ऑक्सीजन और कार्बन डाई ऑक्साइड का रक्त के साथ आदान प्रदान होता है l इन वायुकोषों में पर्याप्त रूप से सांस अंदर लेने तथा बाहर छोड़ने में सिकुड़ने तथा फैलने की क्षमता होती है l जिस वजह से हमारे फेफड़ों द्वारा हम आसानी से सांस ले सकते हैं l यह वायुकोष एक बहुत ही पतली झिल्ली से ढकी हुई होती है l इन्हें ही इन्टरस्टिशीयम के नाम से जाना जाता है l
इन इन्टरस्टिशीयम में किसी वजह से सूजन आने के कारण यह ठोस होने लगती है जिससे वायु कोष के फैलने तथा सिकुड़ने की क्षमता प्रभावित होने लग जाती है जिसके परिणामस्वरूप रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा उचित रूप से पहुंच नहीं पाती हैं जिससे हमे श्वास लेने में कठिनाई होने लगती है l अंतरालीय फेफड़े की बीमारी करीब डेढ़ सौ से दो सौ की संख्या में रोगों का एक बहुत बड़ा समूह हैं l
जैन के गोमूत्र चिकित्सा क्लिनिक का उद्देश्य प्राचीन आयुर्वेदिक ज्ञान को आधुनिक तकनीक के साथ एकीकृत करके एक सुखी और स्वस्थ जीवन बनाना है। हमारी चिकित्सा का अर्थ है आयुर्वेद सहित गोमूत्र व्यक्ति के तीन दोषों पर काम करता है- वात, पित्त और कफ। ये त्रि-ऊर्जा हमारे स्वास्थ्य को बनाए रखती हैं, इन दोषों में कोई भी असंतुलन, मानव स्वास्थ्य और बीमारी के लिए जिम्मेदार है। हमें यह कहते हुए खुशी हो रही है कि हमारे उपचार के तहत हमने इतने सारे सकारात्मक परिणाम देखे हैं। हमारे इलाज के बाद हजारों लोगों को कई बीमारियों से छुटकारा मिला।
हमारे मरीज न केवल अपनी बीमारी को खत्म करते हैं बल्कि हमेशा के लिए एक रोग मुक्त स्वस्थ जीवन जीते हैं। यही कारण है कि लोग हमारी चिकित्सा की ओर ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। आयुर्वेदिक उपचारों में हमारे वर्षों के शोध ने हमें अपनी कार्यप्रणाली को आगे बढ़ाने में मदद की है। हम पूरी दुनिया में एक स्वस्थ और खुशहाल समाज का निर्माण करने के लिए अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचने का लक्ष्य रखते हैं।
गोमूत्र के उपचार के अनुसार, कुछ जड़ी-बूटियां शरीर के दोषों (वात, पित्त और कफ) का कायाकल्प कर सकती हैं और यदि यह दोष शरीर में असमान रूप से वितरित किये जाए, तो यह अंतरालीय फेफड़े की बीमारी का कारण बन सकता है। कुछ आयुर्वेदिक दवाओं में उनके उपचार के लिए कई लाभकारी तत्व होते हैं। यह शरीर के पाचन तंत्र को बेहतर बनाता है।
हम अपने गोमूत्र चिकित्सा में गोजला का उपयोग करते हैं, मूल रूप से इसका मतलब है कि हमारी दवा में मुख्य घटक गोमूत्र अर्क है। यह अर्क गाय की देसी नस्लों के मूत्र से बना है। गोजला के अपने फायदे हैं क्योंकि यह किसी भी प्रकार के संदूषण की संभावना से परे है। इसकी गुणवत्ता उच्च है एवं प्रचुर मात्रा में है। जब गोजला आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों के साथ मिलाया जाता है तो यह किसी भी बीमारी के इलाज के लिए अधिक प्रभावी हो जाता है और विशेष बीमारियों में अनुकूल परिणाम देता है। इस अर्क का अत्यधिक परीक्षण किया गया है और इसलिए यह अधिक विश्वसनीय और लाभदायक भी है।
गोमूत्र के साथ किया गया उपचार अच्छा स्वास्थ्य लाता है और एक क्रम में शरीर के दोषों में संतुलन बनाए रखता है। आज हमारी दवा के अंतिम परिणाम के रूप में मनुष्य लगातार अपने स्वास्थ्य को सुधार रहे हैं। यह उनके दिन-प्रतिदिन के जीवन की स्थिति में सुधार करता है। गोमूत्र के साथ-साथ आयुर्वेदिक दवाएं कई प्रकार की प्रतिक्रियाओं को सीमित करने के लिए एक पूरक उपाय के रूप में काम कर सकती हैं, जो भारी खुराक, मानसिक दबाव, विकिरण और कीमोथेरेपी के उपयोग से आती हैं। हम मनुष्यों को सूचित करते हैं कि यदि कोई रोगी है तो उस विकार के साथ एक आनंदमय और चिंता मुक्त जीवन कैसे जिया जाए। हमारे उपाय करने के बाद हजारों मनुष्य एक संतुलित जीवन शैली जीते हैं और यह हमारे लिए एक बड़ी उपलब्धि है कि हम उन्हें एक जीवन प्रदान करें जो वे अपने सपने में देखते हैं।
आयुर्वेद में गोमूत्र का एक विशेष स्थान है जिसे अंतरालीय फेफड़ों के रोगों के लिए भी फायदेमंद बताया जाता है। हमारी वर्षों की कड़ी मेहनत से पता चलता है कि हमारे आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों का उपयोग करके अंतरालीय फेफड़ों के रोग की लगभग कई जटिलताएं गायब हो जाती हैं। हमारे रोगियों को सांस लेने में कठिनाई, शारीरिक कमजोरी, सूखी खांसी, छाती और जोड़ों में दर्द, उनके शरीर में हार्मोनल और रासायनिक परिवर्तनों में नियंत्रण और संतुलन महसूस होता है और साथ ही यह रोगी की प्रतिरक्षा प्रणाली में सुधार करने में मदद करता है जो अन्य अंतरालीय फेफड़े के रोग की जटिलताओं के लिए अनुकूल रूप से काम करता है।
अगर हम जीवन प्रत्याशा के बारे में बात कर रहे हैं, तो गोमूत्र उपाय अपने आप में बहुत बड़ी आशा है। कोई भी विकार चाहे छोटे हो या गंभीर चरण में, मानव शरीर पर बुरे प्रभाव के साथ आते है और जीवनभर के लिए मौजूद रहते है। एक बार जब विकार को पहचान लिया जाता है, तो जीवन प्रत्याशा छोटी होने लगती है, लेकिन गोमूत्र चिकित्सा के साथ नहीं। हमारा ऐतिहासिक उपाय ना केवल पूरी तरह से विकार का इलाज करता है बल्कि शरीर में किसी भी विषाक्त पदार्थों को छोड़ने के बिना उस व्यक्ति के जीवन-काल में वृद्धि करता है और यही हमारा अंतिम उद्देश्य है।
"सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेत्", इसका अर्थ है कि सभी को खुश रहने दें, सभी को रोग मुक्त होने दें, सभी को सत्य देखने दें, कोई भी दुःख का अनुभव नहीं करे । इस कहावत का पालन करते हुए, हम चाहते हैं कि हमारा समाज ऐसा ही हो। हमारी चिकित्सा विश्वसनीय उपचार देकर, जीवन प्रत्याशा में सुधार और प्रभावित लोगों की दवा निर्भरता को कम करके इस कहावत को पूरा करती है। इस आधुनिक दुनिया में अन्य उपलब्ध चिकित्सा विकल्पों की तुलना में हमारी चिकित्सा में अधिक फायदे और नुकसान शून्य हैं।
व्यापक वैज्ञानिक अभ्यास के अलावा, हमारा केंद्र बिंदु रोग और उसके तत्वों के मूल उद्देश्य पर है जो केवल बीमारी के प्रशासन पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय विकार पुनरावृत्ति की संभावनाओं को बढ़ा सकता है। इस पद्धति के उपयोग से, हम पुनरावृत्ति दर को सफलतापूर्वक कम कर रहे हैं और लोगों की जीवन शैली को एक नया रास्ता दे रहे हैं ताकि वे अपने जीवन को भावनात्मक और शारीरिक रूप से उच्चतर तरीके से जी सकें।
यह रोग किसी को भी हो सकता है तथा इस रोग को कई कारक प्रभावित कर सकते हैं जो निम्नलिखित हो सकते हैं -
बच्चों की तुलना में यह रोग वयस्कों को अधिक प्रभावित करता है खास करके उन लोगों जिनकी उम्र पचास वर्ष या उससे अधिक होती है l
जब व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक प्रणाली उनके शरीर को बचाने की अपेक्षा शरीर की स्वस्थ कोशिकाओं पर ही हमला करने लगती है तब इस बीमारी की वजह से व्यक्ति के फेफड़े भी क्षतिग्रस्त होने लगते हैं जो अंतरालीय फेफड़े की बीमारी के जोखिम को काफी हद तक बढ़ा सकती है l ल्यूपस, रूमेटाइड अर्थराइटिस, सीलिएक रोग और पोलिमायलजिया रियुमैटिका आदि ऑटो इम्यून डिजीज शरीर व फेफड़ों के लिए बहुत घातक हो जाती है l
व्यक्ति अपनी परिस्थितियों के अनुसार ऐसे हानिकारक पदार्थ अपने शरीर में साँस द्वारा प्रवेश कर लेता है जो इस रोग के होने का खतरा कई गुना बढ़ा देते हैं l व्यक्ति लगातार इनके सम्पर्क में रहता है जिससे उसके फेफड़े बुरी तरह से प्रभावित होते हैं l इन हानिकारक पदार्थों में शामिल किए जाते हैं :
पारिवारिक इतिहास में चली आ रही फेफड़ों से संबंधित बीमारियां परिवार के अन्य सदस्यों में इस तरह के रोग का जोखिम बढ़ा सकती है l पारिवारिक सन्दर्भ में आनुवांशिकी कारक अंतरालीय फेफड़े की बीमारी को विकसित करने में योगदान करते हैं l
अंतरालीय फेफड़े की बीमारी के जोखिम को बढ़ाने वाली कुछ दवाइयां जो कि कई छोटे और बड़े रोगों को ठीक करने के लिए ली जाती हैं इस रोग का बहुत गंभीर कारण बन सकती है जो मुख्य तौर पर फेफड़ों को नुकसान पहुंच सकती है l इन दवाइयों में शामिल किया गया है -
कैंसर के उपचार के लिए ली गई रेडिएशन थेरेपी अंतरालीय फेफड़े की बीमारी को आकर्षित करते हैं l
कुछ प्रयासों से इस रोग के जोखिमों को कम किया जा सकता है :
कारणों के आधार पर इस रोग के लक्षण सामान्य तथा गंभीर हो सकते हैं l कुछ आम लक्षण जो इस रोग में देखने को मिलते हैं वे है :
अंतरालीय फेफड़े की बीमारी के मुख्य प्रकार कुछ इस तरह से है -
अंतरालीय फेफड़े की बीमारी के इस प्रकार में इंसान के फेफड़ों में लंबे समय तक के लिए विकार उत्पन्न हो जाता है l इस रोग में इन्टरस्टिशीयम में निशान आ जाते हैं तथा फेफड़ों के भीतर ऊतक ठोस और मोटी हो जाती है l जिससे व्यक्ति को ठीक तरह से सांस नहीं आती है और फेफड़ों संबंधित कई समस्याएं होने लगती है l
यह फेफड़ों की एक पुरानी बीमारी है जो आम तौर पर फंगस, वायरस और बैक्टीरिया के संक्रमण के कारण पैदा होती है तथा अंतरालीय फेफड़े की बीमारी को प्रभावित करती हैं l मायको प्लाज्मा निमोनिया इसका सबसे मुख्य कारण है l
यह रोग शरीर के विभिन्न अंगों को प्रभावित कर फेफड़ों की कोशिकाओं, लिम्फ नोड्स, लसीका ग्रंथि में सूजन करता है l फेफड़ों के साथ साथ यह रोग हृदय, त्वचा तथा आँखों को भी प्रभावित करता है l
फफूंद लगा हुआ चारा या स्थानों, पशु पालन, कबूतर की पीट, कूलर व एयर कंडीशनर में लगी फंगस, पेंट व स्प्रे, आदि एलर्जन्स के रूप व्यक्तियों की संवेदनशीलता को प्रभावित करते हैं l व्यक्ति को इससे एलर्जी होती हैं जिससे उसके फेफड़ों में घाव तथा सूजन होने लगती है l जिसे हाइपर सेंसिटिविटी न्युमोनाइटिस बीमारी के नाम से जाना जाता है l
संयोजी ऊतक रोग वह बीमारी है जो शरीर के उन हिस्सों को प्रभावित करती है जो शरीर की संरचनाओं को एक साथ जोड़ते हैं। संयोजी ऊतक रोगों में रुमेटीइड गठिया, स्क्लेरोडर्मा और ल्यूपस जैसे ऑटोइम्यून रोग शामिल हैं।
लंबे समय तक विषैले पदार्थ या प्रदूषकों का एक्सपोजर फेफड़ों की बीमारियों को जन्म दे सकता है जो एक्सपोजर बंद होने के बाद भी स्थायी प्रभाव डाल सकते हैं। खदानों, कार गेराज, रासायनिक फैक्ट्रियों, खेतों में काम करने वाले लोगों को यह बीमारी होती है जो इनके फेफड़ों को निरंतर क्षतिग्रस्त करती रहती है l
यह रोग गंभीरता के साथ कई जटिलताएं लिए हुए होता है: