कान शरीर का वह महत्वपूर्ण अंग है जिसका उपयोग हर तरह की आवाज़ को सुनकर समझने व शरीर को संतुलित तथा सतर्क रखने के लिए किया जाता है I कान मुख्य रूप से बाहरी, मध्य तथा आतंरिक, इन तीन भागों में बंटा हुआ होता है I यह तीनों भाग एक दूसरे से जुड़े हुए होते है जो मिलकर कार्य करते है व व्यक्ति को सुनने की क्षमता प्रदान करते है I बाहर से सुनाई देने वाली ध्वनि तंरगे कान के बाहरी भाग के माध्यम से आती है I बाहरी भाग से यह ध्वनि तंरगे कान के मध्य भाग में पहुँचती है जहाँ इन ध्वनि तरंगों का कंपन होता है I कान के आंतरिक भाग में पहुँचने वाली ध्वनि द्रव्य रूप में चलती है जहाँ यह विद्युतीय संकेतों में बदल जाती है I तत्पश्चात आंतरिक भाग इन संकेतों को मस्तिष्क तक भेजता है और फिर मस्तिष्क उन्हें ध्वनियों के रूप में पहचानता है।
कान में होने वाली किसी भी तरह की क्षति इसके तीनों भागों व उनके कार्यो को प्रभावित करती है जिस वजह से कान सम्बन्धी कई तरह के विकार उत्पन्न होने का ख़तरा बढ़ जाता है I कान के आंतरिक भाग में बेहद सूक्ष्म बाल होते है जिनके नष्ट होने पर सुनने की क्षमता समाप्त हो जाती है I कान की बनावट दिमाग से जुड़ी है I कान की ख़राबी होने से अथवा कान में किसी प्रकार का विकार होने पर व्यक्ति को दिमाग के रोग भी हो सकते हैं I कान के विकार एक चिंता का विषय है क्योंकि इनकी गंभीर स्थिति व्यक्ति के सुनने की क्षमता को खत्म कर सकती है I
जैन के गोमूत्र चिकित्सा क्लिनिक का उद्देश्य प्राचीन आयुर्वेदिक ज्ञान को आधुनिक तकनीक के साथ एकीकृत करके एक सुखी और स्वस्थ जीवन बनाना है। हमारी चिकित्सा का अर्थ है आयुर्वेद सहित गोमूत्र व्यक्ति के तीन दोषों पर काम करता है- वात, पित्त और कफ। ये त्रि-ऊर्जा हमारे स्वास्थ्य को बनाए रखती हैं, इन दोषों में कोई भी असंतुलन, मानव स्वास्थ्य और बीमारी के लिए जिम्मेदार है। हमें यह कहते हुए खुशी हो रही है कि हमारे उपचार के तहत हमने इतने सारे सकारात्मक परिणाम देखे हैं। हमारे इलाज के बाद हजारों लोगों को कई बीमारियों से छुटकारा मिला।
हमारे मरीज न केवल अपनी बीमारी को खत्म करते हैं बल्कि हमेशा के लिए एक रोग मुक्त स्वस्थ जीवन जीते हैं। यही कारण है कि लोग हमारी चिकित्सा की ओर ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। आयुर्वेदिक उपचारों में हमारे वर्षों के शोध ने हमें अपनी कार्यप्रणाली को आगे बढ़ाने में मदद की है। हम पूरी दुनिया में एक स्वस्थ और खुशहाल समाज का निर्माण करने के लिए अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचने का लक्ष्य रखते हैं।
गोमूत्र चिकित्सा विधि के अनुसार कुछ जड़ी-बूटियां शरीर के दोषों (वात, पित्त और कफ) को फिर से जीवंत करने का काम करती हैं जो कान के विकार का कारण बनती हैं यदि वे असम्बद्ध हैं। कुछ आयुर्वेदिक दवाओं में उनके उपचार के लिए कई लाभकारी तत्व होते हैं। यह शरीर के चयापचय में सुधार करता है।
गोमूत्र उपचार अच्छा स्वास्थ्य लाता है और दोषों को संतुलित रखता है। आज हमारे उपचार के परिणामस्वरूप लोग अपने स्वास्थ्य में लगातार सुधार कर रहे हैं। यह उनके दैनिक जीवन की गुणवत्ता में सुधार करता है। गोमूत्र के साथ-साथ आयुर्वेदिक दवाएँ विभिन्न दुष्प्रभावों को कम करने के लिए एक पूरक चिकित्सा के रूप में काम कर सकती हैं जिन रोगियों को भारी खुराक, मानसिक दबाव, विकिरण और कीमोथेरेपी के माध्यम से उपचार दिया जाता है। हम लोगों को मार्गदर्शन करते हैं कि यदि कोई रोग हो तो उस असाध्य बीमारी के साथ एक खुश हाल और तनाव मुक्त जीवन कैसे जियें। हजारों लोग हमारी थेरेपी लेने के बाद एक संतुलित जीवन जीते हैं और यह हमारे लिए एक बड़ी उपलब्धि है कि हम उन्हें एक ऐसा जीवन दें जिनके वे सपने देखते हैं।
आयुर्वेद में गोमूत्र का एक विशेष स्थान है जिसे कान के विकार के लिए भी फ़ायदेमंद माना जाता है। हमारी वर्षों की कड़ी मेहनत से पता चलता है कि आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों के उपयोग से कान के विकार की लगभग कई जटिलताएँ गायब हो जाती हैं। हमारे रोगियों को उनके सुनने की क्षमता, कान में दर्द व भारीपन, तरल पदार्थ अथवा रक्त का स्त्राव, कान में सूजन, असुविधा, चिड़चिड़ाहट, बेचैनी, हार्मोनल व रासायनिक परिवर्तनों में एक बड़ी राहत महसूस होती है I इसी के साथ ही रोगी की प्रतिरक्षा प्रणाली में सुधार होता है जो कान के विकार की अन्य जटिलताओं के लिए अनुकूल रूप से काम करता है I
अगर हम जीवन प्रत्याशा के बारे में बात कर रहे हैं तो गोमूत्र चिकित्सा अपने आप में बहुत बड़ी आशा है। कोई भी बीमारी या तो छोटी या गंभीर अवस्था में होती है, जो मानव शरीर पर नकारात्मक प्रभाव डालती है और कई वर्षों तक मौजूद रहती है, कभी-कभी जीवन भर के लिए। एक बार बीमारी की पहचान हो जाने के बाद, जीवन प्रत्याशा कम होने लगती है, लेकिन गोमूत्र चिकित्सा से नहीं। हमारी प्राचीन चिकित्सा न केवल रोग से छुटकारा दिलाती है, बल्कि उस व्यक्ति के जीवन-काल को भी बढ़ाती है, जो उसके शरीर में कोई विष नहीं छोड़ता है और यही हमारा अंतिम उद्देश्य है।
"सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेत्", इसका अर्थ है कि सभी को खुश रहने दें, सभी को रोग मुक्त होने दें, सभी को सत्य देखने दें, कोई भी दुःख का अनुभव नहीं करे । इस कहावत का पालन करते हुए, हम चाहते हैं कि हमारा समाज ऐसा ही हो। हमारी चिकित्सा विश्वसनीय उपचार देकर, जीवन प्रत्याशा में सुधार और प्रभावित लोगों की दवा निर्भरता को कम करके इस कहावत को पूरा करती है। इस आधुनिक दुनिया में अन्य उपलब्ध चिकित्सा विकल्पों की तुलना में हमारी चिकित्सा में अधिक फायदे और नुकसान शून्य हैं।
व्यापक चिकित्सा पद्धति के विपरीत, हम रोग और कारकों के मूल कारण पर ध्यान केंद्रित करते हैं जो केवल रोग के प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय रोग पुनरावृत्ति की संभावना में सुधार कर सकती हैं। इस पद्धति का उपयोग करके, हम पुनरावृत्ति दरों को सफलतापूर्वक कम कर रहे हैं और लोगों के जीवन को एक नई दिशा दे रहे हैं ताकि वे भावनात्मक और शारीरिक रूप से बेहतर तरीके से अपना जीवन जी सकें।
कान के विकार निम्नलिखित कारणों से हो सकते है -
कुछ उपाय कान के विकार को रोकने व कम करने में मदद कर सकते है -
व्यक्ति को कानों की स्वच्छता का उचित ध्यान रखना चाहिए व मैल नही जमने देना चाहिए I
सीमा से अधिक ध्वनि कानों को नुकसान पहुँचाती है अतः व्यक्ति को कम आवाज़ सुनने की आदत होनी चाहिए I
अधिक शोर वाले वातावरण में काम करते समय कानों को सुरक्षित रखने हेतु उपकरणों का उपयोग करना चाहिए I
सिगरेट का धुआँ कान में संक्रमण का कारण बन सकता है अतः व्यक्ति को धूम्रपान की आदतों को त्यागना चाहिए I
व्यक्ति को एलर्जी पर नियंत्रण रखने का प्रयास करना चाहिए I
कानों में पानी, कोई बारीक़ अथवा तीखी वस्तु न पहुंचे इसके लिए व्यक्ति को उचित सावधानियां बरतनी चाहिए I
बार-बार कान में उंगली डालकर या फिर कॉटन बड्स से कान साफ करने जैसी आदतों से व्यक्ति को बचना चाहिए ।
व्यक्ति को धूल तथा धुएँ युक्त वायु प्रदूषण वाले क्षेत्रों के संपर्क में आने से बचना चाहिए I
कान के विकार के लक्षणों में शामिल है -
कान के विकार के विभिन्न नाम निम्नलिखित है-
कान के विकार से पीड़ित व्यक्ति को निम्नलिखित जटिलताओं का सामना करना पड सकता है -
कान विकार की गंभीर अवस्था किसी व्यक्ति को स्थायी बहरा बना सकती है I
कुछ कान के विकार व्यक्ति के सुनने की क्षमता को कम कर देते है जिससे व्यक्ति को समझने में कई कठिनाइयाँ आती है I
नाक के विकार व्यक्ति को भावनात्मक तनाव व चिंता जैसी स्थिति में डाल सकते है I
व्यक्ति के अवसाद से ग्रस्त होने की आशंका हो सकती है I
कान का संक्रमण मस्तिष्क को नुकसान पहुंचा सकता है I
कुछ विक़ार के परिणामस्वरूप कान में मवाद से भरे अल्सर का गठन हो सकता है।