व्यक्ति के दिमाग में तक़रीबन सौ अरब तंत्रिका कोशिकाएं होती हैं जिन्हें न्यूरोंस कहा जाता है I ये तंत्रिका कोशिका, तंत्रिका तंत्र में स्थित एक उत्तेजनीय कोशिका होती है। इन कोशिकाओं का कार्य मस्तिष्क से सूचना का आदान प्रदान और विश्लेषण करना है। हर एक तंत्रिका कोशिका बहुत सारी अन्य कोशिकाओं से संवाद कर एक नेटवर्क बनाती हैं। इसके बाद यह नेटवर्क कुछ विशेष कार्यों को पूरा करते है। नेटवर्क की कुछ कोशिकाएं सोचने का काम, कुछ सीखने और कुछ याद रखने का काम करती हैं। अन्य कोशिकाएं हमें देखने, सुनने, सूंघने आदि में मदद करती हैं। इसके अलावा अन्य कोशिकाएं हमारी मांसपेशियों को चलने का निर्देश देती हैं। इस तरह से अपना अपना काम करने के लिए दिमाग की ये सारी कोशिकाएं लघु उद्योग की तरह काम करती हैं। वे सूचनाओं और निर्देशों जमा करके दूसरे अंगो तथा कोशिकाओं तक सप्लाई करती हैं, ऊर्जा पैदा करती हैं, अंगों का निर्माण करती हैं और बेकार चीजों को बाहर निकालती हैं। इस तरह से शरीर और दिमाग को चलते रहने के लिए ये सारी कोशिकाएं समन्वय के साथ कार्य करती है I
जब किसी कारण से इन कोशिकाओं के उद्योग का हिस्सा अथवा नेटवर्क काम करना बंद कर देता है तो व्यक्ति को एक विशेष मानसिक विकार होने लगता है I इस मानसिक विकार को अल्जाइमर रोग के नाम से जाना जाता है I इस रोग में जब कोशिकाओं का एक हिस्सा काम करना बंद कर देता है तो इसका बुरा असर दूसरी कोशिकाओं के काम पर भी पड़ता है I अल्जाइमर रोग की वजह से दिमाग की कोशिकाएं क्षतिग्रस्त होने लगती है तथा धीरे धीरे नष्ट होने लगती है I इन कोशिकाओं के मरने के बाद इसका सबसे ज्यादा असर व्यक्ति की याददाश्त पर पड़ता है जिसके कारण मरीज की याददाश्त कमज़ोर हो जाती है और इसका असर दिमाग के कार्यों पर पड़ता है I शुरुआती दौर में यह रोग हल्का होता है पर जितनी ज्यादा कोशिकाएं नष्ट होती है उतना ही यह रोग बद्तर होता जाता है I इस रोग के कारण व्यक्ति को कुछ भी याद नहीं रहता है और व्यक्ति की याद रखने की शक्ति समाप्त होने लगती है I अल्जाइमर रोग डिमेंशिया का बहुत आम प्रकार है जोकि कमज़ोर बोद्धिक क्षमता से जुड़ा हुआ है I
जैन के गोमूत्र चिकित्सा क्लिनिक का उद्देश्य प्राचीन आयुर्वेदिक ज्ञान को आधुनिक तकनीक के साथ एकीकृत करके एक सुखी और स्वस्थ जीवन बनाना है। हमारी चिकित्सा का अर्थ है आयुर्वेद सहित गोमूत्र व्यक्ति के तीन दोषों पर काम करता है- वात, पित्त और कफ। ये त्रि-ऊर्जा हमारे स्वास्थ्य को बनाए रखती हैं, इन दोषों में कोई भी असंतुलन, मानव स्वास्थ्य और बीमारी के लिए जिम्मेदार है। हमें यह कहते हुए खुशी हो रही है कि हमारे उपचार के तहत हमने इतने सारे सकारात्मक परिणाम देखे हैं। हमारे इलाज के बाद हजारों लोगों को कई बीमारियों से छुटकारा मिला।
हमारे मरीज न केवल अपनी बीमारी को खत्म करते हैं बल्कि हमेशा के लिए एक रोग मुक्त स्वस्थ जीवन जीते हैं। यही कारण है कि लोग हमारी चिकित्सा की ओर ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। आयुर्वेदिक उपचारों में हमारे वर्षों के शोध ने हमें अपनी कार्यप्रणाली को आगे बढ़ाने में मदद की है। हम पूरी दुनिया में एक स्वस्थ और खुशहाल समाज का निर्माण करने के लिए अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचने का लक्ष्य रखते हैं।
गोमूत्र के उपचार के अनुसार, कुछ जड़ी-बूटियाँ शरीर के दोषों (वात, पित्त और कफ) का कायाकल्प कर सकती हैं और यदि यह दोष शरीर में असमान रूप से वितरित किये जाए, तो यह अल्जाइमर रोग का कारण बन सकता है। कुछ आयुर्वेदिक दवाओं में उनके उपचार के लिए कई लाभकारी तत्व होते हैं। यह शरीर के पाचन तंत्र को बेहतर बनाता है।
हम अपने गोमूत्र चिकित्सा में गोजला का उपयोग करते हैं, मूल रूप से इसका मतलब है कि हमारी दवा में मुख्य घटक गोमूत्र अर्क है। यह अर्क गाय की देसी नस्लों के मूत्र से बना है। गोजला के अपने फायदे हैं क्योंकि यह किसी भी प्रकार के संदूषण की संभावना से परे है। इसकी गुणवत्ता उच्च है एवं प्रचुर मात्रा में है। जब गोजला आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों के साथ मिलाया जाता है तो यह किसी भी बीमारी के इलाज के लिए अधिक प्रभावी हो जाता है और विशेष बीमारियों में अनुकूल परिणाम देता है। इस अर्क का अत्यधिक परीक्षण किया गया है और इसलिए यह अधिक विश्वसनीय और लाभदायक भी है।
गोमूत्र उपचार अच्छा स्वास्थ्य लाता है और दोषों को संतुलित रखता है। आज हमारे उपचार के परिणामस्वरूप लोग अपने स्वास्थ्य में लगातार सुधार कर रहे हैं। यह उनके दैनिक जीवन की गुणवत्ता में सुधार करता है। गोमूत्र के साथ-साथ आयुर्वेदिक दवाएं विभिन्न दुष्प्रभावों को कम करने के लिए एक पूरक चिकित्सा के रूप में काम कर सकती हैं जिन रोगियों को भारी खुराक, मानसिक दबाव, विकिरण और कीमोथेरपी के माध्यम से उपचार दिया जाता हैं। हम लोगों को मार्गदर्शन करते हैं कि यदि कोई रोग हो तो उस असाध्य बीमारी के साथ एक खुशहाल और तनाव मुक्त जीवन कैसे जियें। हजारों लोग हमारी थेरेपी लेने के बाद एक संतुलित जीवन जीते हैं और यह हमारे लिए एक बड़ी उपलब्धि है कि हम उन्हें एक ऐसा जीवन दें जिनके वे सपने देखते हैं।
आयुर्वेद में गोमूत्र की एक असाधारण स्थिति है जो अल्जाइमर रोग जैसी भयानक बीमारियों के लिए भी उचित है। हमारे वर्षों के कठिन काम से पता चलता है कि अल्जाइमर रोग के कई मुद्दे हमारे हर्बल उपचार का उपयोग करते हुए लगभग गायब हो जाते हैं। हमारे रोगियों को बातों तथा चीजों को याद ना रख पाने, चीज़े खोने, पढ़ने-लिखने के कार्यो में कठिनाई आने, किसी समस्या को ना सुलझा पाने, गलत फैसले लेने, दैनिक कार्यो को समय पर पूरा न कर पाने, ठीक से बात ना करना पाने, बिना वजह गुस्सा आने, सामाजिक गतिविधियों से दूर रहने, दोस्तों और परिवार के सदस्यों को पहचाने में समस्या होने, नई चीजों को सीखने और समझने में मुश्किल होने, बेवजह रोना, चिंता करना और बेचैन रहने, व्यवहार में चिडचिडापन आने, वजन कम होने, दौरे पड़ने, पेशाब में कमी होने, त्वचा में संक्रमण होने, निगलने में परेशानी होने में एक बड़ी राहत महसूस होती है साथ ही उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली में भी सुधार होता है जो अल्जाइमर रोग की अन्य जटिलताओं के लिए अनुकूल रूप से काम करता है I
अगर हम जीवन प्रत्याशा की बात करें तो गोमूत्र चिकित्सा अपने आप में एक बहुत बड़ी आशा है। कोई भी बीमारी, चाहे वह छोटे पैमाने पर हो या एक गंभीर चरण में, मानव शरीर पर नकारात्मक प्रभाव डालेगी और यह कई वर्षों तक मौजूद रहेगी, कभी-कभी जीवन भर भी। एक बार बीमारी की पहचान हो जाने के बाद, जीवन प्रत्याशा बहुत कम होने लगती है, लेकिन गोमूत्र चिकित्सा के साथ नहीं। हमारी प्राचीन चिकित्सा न केवल बीमारी से छुटकारा दिलाती है, बल्कि शरीर में किसी भी विषाक्त पदार्थों को छोड़े बिना व्यक्ति के जीवनकाल को बढ़ाती है और यह हमारा अंतिम लक्ष्य है।
"सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेत्", अर्थात सभी को हर्षित होने दें, सभी को रोग मुक्त होने दें, सभी को वास्तविकता देखने दें, किसी को कष्ट न होने दें। हम चाहते हैं कि इस कहावत को अपनाकर हमारी संस्कृति इसी तरह हो। हमारी चिकित्सा कुशल देखभाल प्रदान करके, प्रभावित रोगियों की जीवन प्रत्याशा को बढ़ाने और दवा निर्भरता को कम करके इसे पूरा करती है। इस नए युग में, हमारे उपचार में उपलब्ध किसी भी औषधीय समाधान की तुलना में अधिक लाभ और कम जोखिम हैं।
व्यापक अभ्यास की तुलना में, हम रोग के अंतर्निहित कारण और कारणों पर ध्यान केंद्रित करते हैं जो विशेष रूप से रोग के नियंत्रण पर निर्भर होने के बजाय रोग की पुनरावृत्ति की संभावना को बढ़ा सकते हैं। हम इस दृष्टिकोण को लागू करके और लोगों के जीवन को एक अलग रास्ता प्रदान करके प्रभावी रूप से पुनरावृत्ति की दर कम कर रहे हैं ताकि वे अपने जीवन को मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ तरीके से जी सकें।
कई कारण तथा जोखिम कारक इस रोग के लिए जिम्मेदार हो सकते है जिनमें शामिल है -
अल्जाइमर रोग वृद्ध अवस्था में पहुंचे लोगो में सबसे अधिक होता है। 80 साल की उम्र से अधिक आयु वाले व्यक्तियों को इस रोग का ख़तरा सबसे ज्यादा होता है I अधिक आयु होने पर व्यक्ति का शरीर कमजोर होने पर दिमाग भी कमजोर होने लगता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उनकी दिमाग की कोशिकाएं और मस्तिष्क का ठीक से संपर्क नहीं हो पाता है जिस वजह से व्यक्ति को वस्तुए और चेहरों को पहचानने में बहुत कठिनाई होती है।
एक निश्चित जीन- अपोलीपोप्रोटीन ई (एपीओई) जीन नामक एक जीन एक व्यक्ति को अल्जाइमर रोग विकसित करने में अधिक संवेदनशील बनाता है I इस जीन के कई प्रकार हैं। उनमें से एक, APOE-e4 है, जो कि व्यक्ति में इस रोग के ज़ोखिम को विकसित करने के लिए जिम्मेदार माने जा सकते है।
व्यक्ति को होने वाली कुछ बीमारियाँ अल्जाइमर रोग को विकसित करने से जुडी हुई होती है I व्यक्ति अगर हृदय रोग, स्ट्रोक, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, मोटापा और हाइपरलिपिडीमिया जैसे किसी बीमारी से ग्रस्त होता है तो उन्हें अल्जाइमर रोग होने का जोखिम अधिक रहता है I
अल्जाइमर रोग सिर में किसी वजह से लगी चोट का परिणाम हो सकता है। किसी दुर्घटना, टक्कर या गिरने की वजह से जब व्यक्ति के मस्तिष्क में कोई सामान्य या गंभीर आघात वाली चोट लगती है तो तंत्रिका और कोशिकाओं का मस्तिष्क के बीच संपर्क टूट जाता है जिससे कोशिकाओं को नुकसान पहुँचने लगता है जिस वजह से व्यक्ति को याददाश्त खो देने जैसी स्थिति का सामना करना पड़ सकता है।
अल्ज़ाइमर रोग का पारिवारिक इतिहास अन्य व्यक्ति के लिए इस रोग के ख़तरे को बढ़ाते है I यदि किसी व्यक्ति के माता-पिता या भाई-बहनों को अल्ज़ाइमर होता है तो उन्हें भी यह रोग होने की संभावना अधिक रहती है।
स्लीप एपनिया एक नींद संबंधी विकार होता है जिसमें नींद के दौरान व्यक्ति कुछ क्षणों के लिए सांस लेना बंद कर देता है I स्लीप एपनिया की स्थिति में व्यक्ति का सांस लेने और श्वसन कार्य बाधित होता है जिसके कारण वह पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं ले पाते है I इस विकार के कारण तंत्रिका तंत्र प्रभावित होता है जो अल्जाइमर रोग का कारण बन सकता है I
औपचारिक शिक्षा की कमी को अल्ज़ाइमर के बढ़े हुए जोखिम के साथ जोड़ा जा सकता है। इस संबंध का कोई स्पष्ट कारण नहीं है, किंतु कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि औपचारिक शिक्षा में गुजारे गए अधिक वर्ष न्यूरॉन्स के बीच संपर्कों को बढ़ाने में सहायता कर सकते है जिससे सोचने की क्षमता का विकास होता है I कम औपचारिक शिक्षा की वजह से मस्तिष्क, न्यूरॉन से न्यूरॉन के बीच संप्रेषण के मार्गों को ढूंढने में कठिनाई अनुभव करता है और ये कठिनाई अल्ज़ाइमर रोग को विकसित करने का कारण बनते है I
हालाँकि अल्ज़ाइमर रोग को रोकने का कोई कारगर उपाय नहीं है परन्तु फिर भी व्यक्ति अपनी जीवन शैली में कुछ बदलाव लाकर इस रोग को बढ़ाने वाले जोखिमों को कम कर सकते है I इन बदलावों में शामिल है -
अल्जाइमर रोग के शुरुआती लक्षण हल्के होते है पर समय के साथ साथ ये लक्षण मध्यम से लेकर गंभीर होते जाते है जिनमें शामिल है -
अल्जाइमर रोग निम्नलिखित 7 चरणों में होता है -
अल्जाइमर रोग से पीड़ित व्यक्ति को कई सारी जटिलताओं का सामना करना पड़ता है जिनमें शामिल है -