सिरोसिस लिवर में होने वाली वह गंभीर बीमारी होती है जिससे लिवर में किसी कारण आघात पहुँचने पर लिवर पर घाव के निशान पड़ने लगते है l लिवर की कोई पुरानी बीमारी भी लिवर को आघात पहुंचा सकती है जिससे व्यक्ति को सिरोसिस की समस्या हो सकती है l सिरोसिस की वजह से लिवर के टिश्यूज क्षतिग्रस्त होने लगते है तथा लिवर खराब होने लगता है जिस वजह से लिवर ठीक प्रकार से कार्य नहीं कर पाता है l
व्यक्ति के शरीर में लिवर एक ऐसा अंग होता है जो क्षतिग्रस्त होने पर स्वयं स्वस्थ ऊतकों का निर्माण करने लगता है l किसी भी तरह के संक्रमण, आघात आदि के कारण जब लिवर के ऊतक क्षतिग्रस्त होने लगते है तो लिवर स्वस्थ ऊतकों का निर्माण कर उन्हें क्षतिग्रस्त ऊतकों से बदलने लगता है l लगातार चलने वाली लिवर की इस उपचारात्मक प्रक्रिया के दौरान लिवर में निशान होने लगते है जिस कारण व्यक्ति को लिवर सिरोसिस होने लगता है l जब यह लिवर सिरोसिस धीरे धीरे बढ़ने लगते है तो लिवर के कार्यों में गिरावट होने लगती है अंततः लिवर काम करना बंद कर देता है l
जैन के गोमूत्र चिकित्सा क्लिनिक का उद्देश्य प्राचीन आयुर्वेदिक ज्ञान को आधुनिक तकनीक के साथ एकीकृत करके एक सुखी और स्वस्थ जीवन बनाना है। हमारी चिकित्सा का अर्थ है आयुर्वेद सहित गोमूत्र व्यक्ति के तीन दोषों पर काम करता है- वात, पित्त और कफ। ये त्रि-ऊर्जा हमारे स्वास्थ्य को बनाए रखती हैं, इन दोषों में कोई भी असंतुलन, मानव स्वास्थ्य और बीमारी के लिए जिम्मेदार है। हमें यह कहते हुए खुशी हो रही है कि हमारे उपचार के तहत हमने इतने सारे सकारात्मक परिणाम देखे हैं। हमारे इलाज के बाद हजारों लोगों को कई बीमारियों से छुटकारा मिला।
हमारे मरीज न केवल अपनी बीमारी को खत्म करते हैं बल्कि हमेशा के लिए एक रोग मुक्त स्वस्थ जीवन जीते हैं। यही कारण है कि लोग हमारी चिकित्सा की ओर ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। आयुर्वेदिक उपचारों में हमारे वर्षों के शोध ने हमें अपनी कार्यप्रणाली को आगे बढ़ाने में मदद की है। हम पूरी दुनिया में एक स्वस्थ और खुशहाल समाज का निर्माण करने के लिए अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचने का लक्ष्य रखते हैं।
गोमूत्र चिकित्सा के दृष्टिकोण के अनुरूप कुछ जड़ी-बूटियां शारीरिक दोषों (वात, पित्त और कफ) को फिर से जीवंत करने का काम करती हैं जो कि सिरोसिस का कारण बन सकती हैं यदि वे असंतुष्ट हों। उनसे निपटने के लिए कुछ आयुर्वेदिक दवाओं में कई लाभकारी तत्व शामिल हैं। यह शरीर के चयापचय में सुधार करता है।
हम अपने गोमूत्र चिकित्सा में गोजला का उपयोग करते हैं, मूल रूप से इसका मतलब है कि हमारी दवा में मुख्य घटक गोमूत्र अर्क है। यह अर्क गाय की देसी नस्लों के मूत्र से बना है। गोजला के अपने फायदे हैं क्योंकि यह किसी भी प्रकार के संदूषण की संभावना से परे है। इसकी गुणवत्ता उच्च है एवं प्रचुर मात्रा में है। जब गोजला आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों के साथ मिलाया जाता है तो यह किसी भी बीमारी के इलाज के लिए अधिक प्रभावी हो जाता है और विशेष बीमारियों में अनुकूल परिणाम देता है। इस अर्क का अत्यधिक परीक्षण किया गया है और इसलिए यह अधिक विश्वसनीय और लाभदायक भी है।
गोमूत्र का उपचार अच्छा स्वास्थ्य देता है और संतुलन बनाए रखता है। आज, हमारे उपचार के कारण, लोग अपने स्वास्थ्य में लगातार सुधार कर रहे हैं। यह उनके दैनिक जीवन की गुणवत्ता में सुधार करता है। भारी खुराक, मानसिक तनाव, विकिरण और कीमोथेरेपी के उपयोग से होने वाले विभिन्न दुष्प्रभावों को कम करने के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सा और गोमूत्र को पूरक चिकित्सा के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। हम लोगों को असाध्य रोगों से खुश, तनाव मुक्त जीवन जीना सिखाते हैं। हमारे उपचार को प्राप्त करने के बाद हजारों लोग एक संतुलित जीवन जी रहे हैं। यह हमारे लिए एक बड़ी उपलब्धि है कि हम उन्हें उनके सपनों की जिंदगी दे सकते है।
आयुर्वेद में गोमूत्र की असाधारण स्थिति है जो सिरोसिस जैसी बीमारियों के लिए अतिरिक्त रूप से उचित है। हमारे वर्षों के कठिन काम से पता चलता है कि सिरोसिस के कई मुद्दे हमारे हर्बल उपचार का उपयोग करते हुए लगभग गायब हो जाते हैं। हमारे रोगियों को शरीर में सूजन, कमजोरी, खुजली और मांसपेशियों में ऐंठन, शरीर में हार्मोनल और रासायनिक परिवर्तनों के नियंत्रण और संतुलन में एक बड़ी राहत महसूस होती है और रोगी की प्रतिरक्षा प्रणाली में सुधार होता है जो अन्य सिरोसिस जटिलताओं के लिए अनुकूल रूप से काम करता है।
अगर हम जीवन प्रत्याशा के बारे में चिंतित हैं, तो गोमूत्र उपचार अपने आप में बहुत बड़ा वादा है। कोई भी विकार, चाहे वह मामूली हो या गंभीर, किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और जीवन में कई वर्षों तक रहता है। जीवन प्रत्याशा संक्षिप्त है जब तक कि स्थिति की पहचान नहीं की जाती है, लेकिन गोमूत्र उपचार के साथ नहीं। न केवल हमारी प्राचीन चिकित्सा बीमारी को कम करती है, बल्कि यह व्यक्ति की दीर्घायु को उसके शरीर में कोई भी दूषित तत्व नहीं छोड़ती है और यह हमारा अंतिम उद्देश्य है।
"सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेत्", इसका अर्थ है सभी को हर्षित होने दें, सभी को बीमारी से मुक्त होने दें, सभी को वास्तविकता देखने दें, कोई भी संघर्ष ना करे। इस आदर्श वाक्य के पालन के माध्यम से हमें अपने समाज को इसी तरह बनाना है। हमारा उपचार विश्वसनीय उपाय देने, जीवन प्रत्याशा में सुधार और प्रभावित लोगों की दवा निर्भरता कम करने के माध्यम से इसे पूरा करता है। इस समकालीन समाज में, हमारे उपाय में किसी भी मौजूदा औषधीय समाधानों की तुलना में अधिक लाभ और कमियां बहुत कम हैं।
व्यापक वैज्ञानिक अभ्यास के अलावा, हमारा केंद्र बिंदु रोग और उसके तत्वों के मूल उद्देश्य पर है जो केवल बीमारी के प्रशासन पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय विकार पुनरावृत्ति की संभावनाओं को बढ़ा सकता है। इस पद्धति के उपयोग से, हम पुनरावृत्ति दर को सफलतापूर्वक कम कर रहे हैं और लोगों की जीवन शैली को एक नया रास्ता दे रहे हैं ताकि वे अपने जीवन को भावनात्मक और शारीरिक रूप से उच्चतर तरीके से जी सकें।
कई सारी बीमारियां तथा स्थितियां लिवर को प्रभावित कर सिरोसिस को विकसित करने का कारण बनती है जिनमे शामिल है -
जब व्यक्ति शराब का अत्यधिक सेवन करता है तो परिणामस्वरूप उसे सिरोसिस होने का खतरा कई गुना तक बढ़ जाता है l शराब की रासायनिक प्रतिक्रिया लिवर की कोशिकाओं को नुकसान पहुँचाती है l यह क्षति लिवर ठीक करने की कोशिश करता है जिस कारण से लिवर में सूजन और जख्म होने लगते है l साथ ही शराब आंत को भी नुकसान पहुंचाने का काम करती है जिस वजह से शराब में मौजूद विषाक्त पदार्थ लिवर में पहुंचते है और व्यक्ति को सिरोसिस होने लगता है l
क्रॉनिक हेपेटाइटिस का संक्रमण व्यक्ति के लिवर को बहुत अधिक क्षति पहुंचाता है l हेपेटाइटिस होने पर व्यक्ति के लिवर में सूजन आ जाती है जो कि खान पान में समस्या, असुरक्षित यौन संबंधों आदि की वजह से हो सकता है l वह व्यक्ति जो क्रॉनिक हेपेटाइटिस के संक्रमण से पीड़ित रहे हो उन्हें सिरोसिस होने जोखिम अधिक रहता है l कुछ लोगों में हेपेटाइटिस बी और सी एक पुराने लिवर संक्रमण का कारण बन सकता है जो बाद में सिरोसिस में विकसित हो सकता है l
फैटी लिवर की समस्या व्यक्ति को उस समय होती है जब उनके लिवर में बहुत अधिक वसा जमा होने के कारण लिवर में सूजन आ जाती है l यह सूजन लिवर को बहुत अधिक नुकसान पहुंचाती है जिस कारण से लिवर में स्कारिंग पैदा हो सकती है तथा यह समस्या सिरोसिस की स्थिति को विकसित करती है l
सिस्टिक फाइब्रोसिस एक आनुवंशिक विकार होता है जो व्यक्ति के फेफड़े, पाचन तंत्र तथा शरीर के अन्य अंगों को गंभीर नुकसान पहुंचाता है l सिस्टिक फाइब्रोसिस बलगम, पाचन रस और पसीने का उत्पादन करने वाली कोशिकाओं को प्रभावित करते है l सिस्टिक फाइब्रोसिस से निर्मित बलगम लिवर में पित्त नलिकाओं को अवरुद्ध करता है जिससे लिवर में सूजन आ जाती है और यह सूजन लिवर में स्कारिंग पैदा करते है जिससे लिवर ठीक से कार्य नहीं कर पाता है l
व्यक्ति जिन्हें टाइप 2 डायबिटीज की समस्या है उन्हें सिरोसिस होने की संभावना अधिक हो जाती है l टाइप 2 डायबिटीज होने के कारण लिवर वसा हानिकारक सूजन को ट्रिगर करता है जिससे लिवर में निशान-ऊतक बनते है और व्यक्ति में सिरोसिस विकसित होता है l
व्यक्ति का बढ़ा हुआ वजन क्रोनिक लिवर रोग का कारण बनता है जिससे व्यक्ति को सिरोसिस की समस्या होती है l मोटे व्यक्ति के शरीर में बहुत अधिक वसा का निर्माण होता है जिससे वसायुक्त लिवर ऊतकों में सूजन होने लगती है l इस सूजन के कारण लिवर कोशिकाएं क्षतिग्रस्त अथवा नष्ट होने लगती है जिसे लिवर लगातार ठीक करने की कोशिश करता है और इससे व्यक्ति में सिरोसिस का खतरा बढ़ने लगता है l
ग्लाइकोजन स्टोरेज बीमारी, अल्फा 1 ऐन्टीट्रिप्सिन की कमी, हेमोक्रोमैटोसिस,विल्सन, परजीवी संक्रमण आदि कई रोग सिरोसिस को विकसित करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान देते है जिनमे लिवर कोशिकाएं बड़े पैमाने पर नष्ट हो जाती है और उनके स्थान पर फाइबर तंतुओं का निर्माण हो जाता है l
सिरोसिस से निवारण हेतु व्यक्ति निम्नलिखित उपायों को अपनाकर इसे विकसित होने से रोक सकता है -
लिवर सिरोसिस के लक्षण और संकेतों में शामिल है -
सिरोसिस के प्रकार
सिरोसिस के निम्नलिखित प्रकार के अंतर्गत आते है -
व्यक्ति को एल्कोहोलिक सिरोसिस वर्षों तक बहुत अधिक शराब का सेवन करने से होता है l एल्कोहोलिक सिरोसिस एल्कोहॉलिक लिवर की बीमारी का एक उन्नत चरण होता है जिसके कारण व्यक्ति का लिवर कठोर हो जाता है और उसमें सूजन रहने लगती है जिससे लिवर मुश्किल से अपना कार्य कर पाता है l
व्यक्ति को होने वाला पोस्ट नेक्रोटिक सिरोसिस, औद्योगिक रसायनों के संपर्क के साथ आहार संबंधी कमियों तथा लम्बे समय बाद तीव्र वायरल हेपेटाइटिस पोस्टिंटॉक्सिकेशन के परिणामस्वरूप व्यापक निशान-ऊतक के रूप में विकसित होते हैं I पोस्ट नेक्रोटिक सिरोसिस में लोबुल शामिल होते हैं जो लिवर के छोटे विभाजन हैं। हेपेटाइटिस, लिवर का एक वायरल संक्रमण, आमतौर पर पोस्ट नेक्रोटिक सिरोसिस बीमारी का कारण बनता है I कुछ जहरीले पदार्थ भी इस बीमारी का कारण हो सकते हैं।
लिवर के भीतर पित्त के निर्माण के कारण व्यक्ति को बिलियरी सिरोसिस की बीमारी होती है जिसके फलस्वरूप लिवर से पित्त को निकालने वाली छोटी पित्त नलिकाओं को नुकसान होता है l लंबे समय तक रहने वाली यह स्थिति के कारण यह दबाव निर्माण पित्त नलिकाओं को क्षतिग्रस्त कर देता है जिससे लिवर कोशिकाएं नष्ट हो जाती है और व्यक्ति को बिलियरी सिरोसिस की समस्या होती है l
कार्डियक सिरोसिस, सिरोसिस का गंभीर दाएं तरफा लंबी अवधि के दिल की विफलता के साथ जुड़े काफी दुर्लभ प्रकार है l यद्यपि कार्डियक सिरोसिस के मामले कम देखने को मिलते है लेकिन इसके कारण इस्केमिक हृदय रोग, वाल्वुलर हृदय रोग, प्राथमिक फेफड़ों के रोग,कार्डियोमायोपैथी तथा पेरिकार्डियल रोग आदि कई रोग जिम्मेदार हो सकते है l
सिरोसिस से पीड़ित व्यक्ति को निम्नलिखित जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है -
"विभिन्न अध्ययन किए गए हैं जहां जैन गाय मूत्र चिकित्सा ने रोगियों में महत्वपूर्ण सुधार दिखाया है।"